देसी कहानी: "नन्ही की डोली"

बिहार के एक छोटे से गाँव "सरायपुर" में रामप्रसाद नाम का किसान अपनी पत्नी, बेटा और बेटी के साथ रहता था।
उसकी बेटी नन्ही गाँव में सबकी चहेती थी। बड़ी-बड़ी आँखें, सादा दुपट्टा और हमेशा हँसता हुआ चेहरा। खेत-खलिहान से लेकर तालाब तक, जहाँ भी जाती, अपने पीछे हँसी और शरारत छोड़ जाती।

गाँव की औरतें अक्सर कहतीं –
“रामप्रसाद, तुम्हारी बिटिया तो लक्ष्मी है, घर में चहल-पहल बनी रहती है।”

रामप्रसाद गर्व से मुस्कुरा देता।


शिक्षा का सपना

नन्ही पढ़ने-लिखने में बहुत तेज़ थी। गाँव की सरकारी स्कूल में सब उससे नोट्स मांगते। पर उसके पिता के पास ज़्यादा पैसे नहीं थे। एक बार नन्ही ने कहा –
“बाबा, मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ, मास्टरनी बनूँगी।”

रामप्रसाद की आँखें भर आईं।
वो जानता था हालात कठिन हैं, पर उसने बेटी का सपना पूरा करने का मन बना लिया। उसने खेत बेचने की बात सोची, लेकिन गाँव में लोग हँसने लगे –
“लड़कियों को इतना पढ़ाने की क्या ज़रूरत है? दो साल में शादी करके चली जाएगी।”


मोड़

समय बीतता गया। नन्ही ने मेहनत से पढ़ाई जारी रखी। मैट्रिक में पूरे ब्लॉक में पहला स्थान लाया। अब तो गाँव में भी लोग कहने लगे –
“अरे, रामप्रसाद की बिटिया कमाल की है!”

उसी दौरान शहर से नन्ही के लिए रिश्ता आया। लड़का सरकारी नौकरी में था। माँ-बाबा खुश हुए, पर नन्ही चुपचाप बैठ गई।
उसने बाबा से कहा –
“अगर मेरी डोली उठानी ही है, तो पहले मेरी किताबों को पूरा खिलने दो। शादी मैं कर लूँगी, मगर अपने पैरों पर खड़े होकर।”

रामप्रसाद ने समाज की परवाह न करते हुए, बेटी का साथ दिया। उसने मेहनत-मज़दूरी की, कर्ज लिया, और नन्ही को कॉलेज भेजा।


डोली की खुशी

कुछ साल बाद, नन्ही ने बी.एड. कर लिया और गाँव की स्कूल में अध्यापिका बन गई। जिस दिन पहली बार वो साड़ी पहनकर स्कूल पहुँची, पूरा गाँव देखने आया।
बच्चे उसकी ओर दौड़कर बोले –
“गुरुजी की बिटिया अब हमारी मास्टरनी हो गई!”

रामप्रसाद की आँखें भर आईं।
उसकी डोली अब किताबों और बच्चों के सपनों में सज चुकी थी।


अंत

कुछ महीनों बाद नन्ही की शादी भी हुई, लेकिन इस बार पूरे गाँव ने गर्व से डोली उठाई। लोग कह रहे थे –
“रामप्रसाद ने सही किया, बेटी को उड़ान दी। अब तो हमारी बेटियाँ भी आगे पढ़ेंगी।”

गाँव की गलियों में अब भी बच्चे गुनगुनाते हैं –
“नन्ही मास्टरनी हमें पढ़ाती है, सपनों की राह दिखाती है।”

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